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श्रीसम्यग्दर्शन पद का श्वेत वर्ण क्यों ?
श्रीसिद्धचक्र-नवपद पैकी छठा श्रीसम्यग्दर्शन पद है। शास्त्र में उसका श्वेत वर्ण प्रतिपादित किया गया है। अन्य कोई वर्ण न लेकर उसका श्वेत वर्ण ही क्यों प्रतिपादित किया है ? कारण यही है कि श्रीसम्यग्दर्शनसम्यक्त्व प्रात्मा का गुण है। गुणी व्यक्ति में रहे हुए गुण सर्वदा श्वेत-उज्ज्वल ही होते हैं । वर्गों में उत्तम वर्ण श्वेत है। उसका श्रीसम्यग्दर्शन गुण के साथ होना स्वाभाविक सुन्दर है। अनेक प्रकार की उपमाओं से भी यह घटित है । जैसे--
(१) श्रीसम्यग्दर्शन पद (यह गुण) 'सुदर्शन चक्र' के समान है। जैसे सुदर्शन चक्र शुक्ल-श्वेतवर्णवन्त है वैसे ही श्रीसम्यग्दर्शन पद भी शुक्ल-श्वेतवर्णवन्त है ।
(२) श्रीसम्यग्दर्शन पद (यह गुण) 'वज्र' के समान है । दर्शन पद से सद्धर्म में दृढ़ता-मजबूती पैदा होती है । वह दृढ़ता वज्र के समान है। जैसे वज्र श्वेत-उज्ज्वल है वैसे ही श्रीसम्यग्दर्शन-सम्यक्त्व भी श्वेत उज्ज्वल है ।
(३) श्रीसम्यग्दर्शन पद (यह गुण) रक्षण के लिये 'गढ़-किले' के समान है। जिस तरह नगर आदि के चारों तरफ बनाया हुआ मजबूत गढ़-किला नगरादिक का
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१५२