________________
[४] चार प्रकार की सहहणा-श्रद्धा (परमार्थसंस्तव
आदि)।
[३] तीन प्रकार का लिङ्ग (शुश्रूषा आदि) । [१०] दस प्रकार का विनय (अर्हद्विनय आदि)। [३] तीन प्रकार की शुद्धि (मनःशुद्धि आदि) । [५] पांच प्रकार के दूषण (शंका, कांक्षा आदि)। [८] आठ प्रकार के प्रभावक (प्रवचनप्रभावक आदि)। [५] पाँच प्रकार के भूषण (कौशल्यभूषण आदि)। [५] पाँच प्रकार के लक्षण (उपशम गुण आदि) । [६] छह प्रकार की जयणा (परतीथिकादि नमस्कार
वर्जन आदि)। [६] छह प्रकार के प्रागार (राजाभियोगाकार आदि)। [६] छह प्रकार की भावना ('सम्यक्त्वं चारित्र
धर्मस्य मूलम्' आदि)। [६] छह प्रकार के स्थान ('अस्ति जीव' इति श्रद्धा
नस्थान आदि)।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१५१