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हिंसादिक मूल गुण या पिण्डविशुद्धि आदि उत्तरगुण सुरक्षित नहीं रह सकते । इसलिये अनन्त ज्ञानी महापुरुषों ने कहा है कि सम्यग्दर्शनहीन ज्ञान अज्ञान और प्रमाण है तथा संयम चारित्र भी निष्फल ही है । जगत के जीवों को परमपद- मोक्ष प्राप्त करने के लिये यह शुद्ध सम्यग्दर्शन सम्यक्त्व ही मुख्य कारण है । उसका श्रद्धा, लक्षण, भूषण इत्यादि भेदों से आत्मा को सही रूप में भान होता है और स्वीकारने से आत्मा की उन्नति, आबादी एवं आजादी प्राप्त होती है। सही रूप में श्री सम्यग्दर्शनपद को मोक्षपद की प्राप्ति में बीज रूप माना है ।
श्रीसम्यग्दर्शन के नाम
शास्त्रों में अनंत ज्ञानी महापुरुषों ने श्रीसम्यग्दर्शन के अनेक नाम प्रतिपादित किये हैं। जैसे - सम्यक्त्व, समकित मुक्तिबीज, तत्त्वसंवेदन तत्त्वश्रद्धा, तत्त्वरुचि, दुखांतकार, सुखारंभ एवं सम्यग्दर्शन इत्यादि । ये नाम सही, सार्थक और घटमान गुणनिष्पन्न हैं । सम्यग्दर्शन यानी सत्यदर्शन - यथार्थदर्शन ।
श्री सम्यग्दर्शन के प्रकार
जैनशास्त्रों में श्री सम्यग्दर्शन का अनेक प्रकार-भेदों से निरूपण किया गया है। उसके ६७ भेद सुप्रसिद्ध हैं-
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन - १५०
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