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________________ उसके अनेक भेद जैनागमशास्त्र में प्रतिपादित किये गए हैं। उनमें से इधर आवश्यक भेदों की जानकारी निम्नलिखित प्रकार से है । सम्यक्त्व के भेद तीन प्रकार से प्रतिपादित किये गये हैं-- (१) निसर्ग सम्यक्त्व और अधिगम सम्यक्त्व । गुरु का सदुपदेशादिक श्रवण किये बिना प्रात्मा में जो स्वाभाविक श्रद्धा गुण प्रगट होता है, वह 'निसर्ग सम्यक्त्व' है तथा गुरु के सदुपदेश-श्रवण द्वारा जो श्रद्धा गुण प्रगट होता है, वह 'अधिगम सम्यक्त्व' है। यह सम्यक्त्व के दो भेदों का प्रथम प्रकार है। (२) नैश्चयिक सम्यक्त्व और व्यावहारिक सम्यक्त्व । ज्ञानदर्शनादिक गुणमय आत्मा का जो शुद्ध परिणाम होता है, वह 'नैश्चयिक सम्यक्त्व' है तथा जिससे सम्यग्दर्शन प्रगट होता है ऐसे जिनदेवपूजा और तीर्थयात्रादिक में आत्मा को प्रवृत्ति रूप जो कार्य होते हैं, वह 'व्यावहारिक सम्यक्त्व' है। यह सम्यक्त्व के दो भेदों का दूसरा प्रकार है। श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१४६
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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