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________________ क्षायिक सम्यक्त्व के अतिरिक्त दूसरे दो सम्यक्त्व - औपशमिक और क्षायोपशमिक प्राप्त होने के पश्चात् वापिस चले भी जाते हैं । क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त होने के पश्चात् कभी नहीं छूटता । इस संसार में समस्त भव चक्र में जीव को प्रपशमिक सम्यक्त्व मात्र पांच बार प्राप्त होता है, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व असंख्याती बार प्राप्त होता है तथा क्षायिक सम्यक्त्व तो मात्र एक बार ही प्राप्त होता है । सम्यग्दर्शन के मेदों की जानकारी वस्तु-पदार्थ में दो धर्म रहते हैं । सामान्य धर्म और विशेष धर्म । उसमें जिससे सामान्य धर्म का अवबोध होता है, वह दर्शन गुरण की अपेक्षा से होता है । जो दूसरे दर्शनावरणीय कर्म के उदय से आच्छादित है; वह गुरण न लेकर, आत्मा का जो सम्यग्दर्शन गुण मोहनीय कर्म के उदय से आच्छादित है, वह दर्शन गुरण लेने का है । जिसके द्वारा आत्मा को वीतरागदेव श्रीजिनेश्वर - तीर्थंकर परमात्मा के वचनों पर दृढ़ श्रद्धा प्रगटती है वही सम्यग्दर्शन है । उसे 'सम्यक्त्व' या 'समकित ' नाम से भी पहिचानते हैं । श्री सिद्धचक्र - नवपदस्वरूपदर्शन - १४५
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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