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________________ (३) द्रव्य सम्यक्त्व और भाव सम्यक्त्व । 'तमेव सच्चं निस्संकं, जं जिणेहि पवेइयं' श्रीजिनेश्वरतीर्थंकर भगवन्त ने जो कहा है, वही सच्चा है और शंका रहित है। ऐसे परमार्थ को नहीं जानने वाले भव्य जीव की जो श्रद्धा है वह 'द्रव्य सम्यक्त्व' है, अथवा जहाँ पर सम्यक्त्व मोहनीय कर्म का रसोदय हो और जो श्रद्धा होती हो ऐसा क्षयोपशम सम्यक्त्व भी 'द्रव्य सम्यक्त्व' है तथा सर्वज्ञ श्रीजिनेश्वरदेवकथित जीवाजीवादि नौ तत्त्व को जानने पूर्वक श्रीजिनेश्वरदेव के वचन पर जो श्रद्धा हो, वह 'भाव सम्यक्त्व' है । अथवा दर्शन मोहनीय कर्म के रसोदय और प्रदेशोदय रहित जो औपशमिक सम्यक्त्व तथा क्षायिक सम्यक्त्व है उसे भी 'भाव सम्यकत्व' जानना चाहिये । यह सम्यक्त्व के दो भेदों का तीसरा प्रकार है । अब सम्यक्त्व के तीन भेद, दो प्रकार से कहते हैं(१) कारक सम्यक्त्व, (२) रोचक सम्यक्त्व और (३) दीपक सम्यक्त्व । (१) सर्वज्ञ विभु श्रीजिनेश्वर-तीर्थंकर परमात्मा द्वारा प्रतिपादित देवपूजा, तीर्थयात्रा, शासन-प्रभावनादिक जो सम्यक्त्व की करणी पात्मा से की जाय, वह 'कारक सम्यक्त्व' है। (२) प्रात्मा मोहनीय कर्म के तीव्रोदय से सम्यग श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१४७
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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