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डूबती हुई दुनिया को बचाने वाले अद्वितीय अणगारसाधु भगवन्त हो। दिन-प्रतिदिन सुवर्ण की भांति चढ़ते रंग वाले हो।
साधुपद का आराधन सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र रूप मोक्षमार्ग के साधन को अपनाने वाले साधु भगवन्त पंचमहाव्रतों का और छठे रात्रिभोजन त्याग व्रत का पालन जीवन पर्यन्त करते हैं । साधु के सत्ताईस गुणों तथा चरणसित्तरी
और करणसित्तरी के गुणों को प्राप्त करने के लिये सर्वदा उद्यमवन्त होते हैं। मात्र संयमसाधन के लिये बयालीस दोष रहित आहार-पानी ग्रहण करते हैं। वीतराग विभु जिनेश्वर-तीर्थंकर परमात्मा की आज्ञा के पालक ऐसे साधुमुनि महाराज की भक्ति-सेवा करने से इस पंचम साधुपद का आराधन अवश्य हो सकता है।
श्री जैनधर्म की सभी आराधनायें भावों की मुख्यता पर है। भाव की प्राप्ति श्री वीतरागदेव के साधु-मुनिपने बिना प्रायः अशक्य ही गिनी जाती है। मोक्ष में जाने के लिये राजमार्ग जैनमुनिदशा ही समझना चाहिये ।
साधुपद के आराधक की भावना श्रीसिद्धचक्र-नवपद के पंचम साधुपद की आराधना
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१३८