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________________ करने वाला आराधक अपने अन्तःकरण हृदय में हार्दिक तीव्र अभिलाषा रखते हुए 'शुद्ध साधुपद मुझको कब प्राप्त हो?' ऐसी भावना अहर्निश करे। इसके समर्थन में पंन्यास श्री पद्मविजयजी महाराज विरचित श्री नवपदजी की पूजा के अन्तर्गत पाठवीं 'चारित्रपदपूजा' में भी कहा है कि-- 'संयम कब मिलेश ? सनेही प्यारा हो ?' हे स्नेही मित्र ! मुझको संयम (चारित्र) कब मिलेगा ? साधुपद की पाराधना से मुझमें साधुपद प्राप्त करने की योग्यता प्राप्त हो । समस्त गुणों का अाधारभूत यहो पद है । इसलिये कहा जाता है कि साधुपद के समान कोई भी पद विश्व में नहीं है। इस पद की विधिपूर्वक योग्यउचित पाराधना करने वाले आराधक को ऐसी ही योग्यता प्राप्त हो जाय, तभी वह आराधन सफल होता है। इस पद को अाराधना से रोहिणी सती-शिरोमरिण हुई । _ विश्व के सभी प्राणी साधपद के आराधक बन कर और उसका ही अनुसरण कर आत्मा की उन्नति एवं स्वतन्त्रता प्राप्त कर, परमपद को प्राप्त करें, यही भावना है। श्री सिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१३६
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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