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________________ में तथा श्रीसिद्धचक्र-नवपद में आपका पाँचवाँ स्थान है । आप पंच महाव्रतादि संयम के योगों में सर्वदा निमग्न रहते हैं। अापकी साधना का लक्ष्य बिन्दु सत्चिदानंदस्वरूप शाश्वतसुख शाश्वतपद-परमपद प्राप्ति का है । वहाँ तक पहुंचने के लिये आप सतत प्रयत्न-उद्यतशील रहते हैं। आप अप्रमत्तदशा में और आत्मरमणता में नित्य रमते हैं। विश्व भर में वर्तमान धर्मगुरुओं में मुख्य-टोच के स्थान पर विराजमान आप ही हैं । विश्व के समस्त प्राणियों के हितों की सुरक्षा के बारे में आशा की किरण के समान पाप ही हैं। सर्वज्ञ विभु श्री तीर्थंकर परमात्मा प्ररूपित धर्मतीर्थ के अहिंसक मार्ग के रक्षणहार आप ही हैं, इतना ही नहीं किन्तु उनकी सुव्यवस्था और उनके प्रतीकों को विश्व में चिरस्मरणीय रखने वाले सद्गुरु आप ही हैं। जो आपका सही रूप में ध्यान धरते हैं, उनमें साधुता का प्रगटीकरण हो जाता है । धन्य है आपको, आपके अनुपम संयम को, अपूर्व समता को और सुन्दर समाधि को। आपकी अद्भुत कोटि की अनुपम साधना और उत्तम आराधना अहर्निश अनुकरणीय एवं अनुमोदनीय-प्रशंसनीय है। आप कर्मों के शिकजे में पड़े हुए प्राणियों को छुड़ाने वाले और पाप में श्री सिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१३७
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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