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जो सप्त भयों के जेता हैं, आठ मदों को टाले हुए हैं और अप्रमत्त होकर नव प्रकार की ब्रह्मचर्य की गुप्तियों का पालन करते हैं ऐसे सर्व साधुओं को मैं वन्दन करता हूँ ।। ६३ ।।
दसविधम्मं तह, बारसेव पडिमा जे श्र कुव्वंति । बारसविहं तवोविप्र, ते सव्वे साहुगो वंदे ॥ ६४ ॥
दस प्रकार के यतिधर्म को, द्वादश (बारह) प्रकार की पडिमा को तथा द्वादश (बारह) प्रकार के तप को जो प्राराधते हैं, ऐसे सर्व साधुत्रों को मैं वन्दन करता हूँ ।। ६४ ।।
जे सत्तरसंजमंगा, उच्वूढा ढारससहस्ससीलंगा । विहरति कम्मभूमिसु ते सव्वे साहरणो वंदे ।। ६५ ।।
सत्रह प्रकार के संयम को पालने वाले तथा अठारह हजार शीलांग को धारण करते हुए जो कर्मभूमि में विचरते हैं ऐसे सर्व साधुयों को मैं वन्दन करता हूँ ।। ६५ ।।
मंगलरूप साधुमहाराज
शास्त्र में चार पदार्थ मंगलरूप प्रतिपादित किये गये हैं । उनका नाम-निर्देश इस प्रकार है - " चत्तारि मंगलंअरिहता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपन्नत्तो श्री सिद्धचक्र - नवपदस्वरूपदर्शन- १३३