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कल्पी हो, युगप्रधान हो, प्राचार्यदेव हो, उपाध्याय महाराज हो, पंन्यास हो, प्रवर्तक हो, गणावच्छेदक हो, गणी हो, स्थविर हो, सामान्य मुनिपदधारी हो, सालंबन हो, निरालंबन हो, ज्ञानी हो, दर्शनी हो, चारित्री हो, ध्यानी हो, मौनी हो, त्यागी हो, तपस्वी हो, वैयावच्चकारी हो, सेवाभावी हो, भक्तिवन्त हो, क्षुल्लक हो, बाल हो, ग्लान हो, वृद्ध हो, भद्रिक-सरल परिणामी हो, छठे गुणठाणा से चौदहवें गुणठाणा तक में कोई भी गुणठाणे विराजित हो, ढाईद्वीप में तथा पन्द्रह कर्मभूमिक्षेत्रों की १७० विजयों में किसी भी स्थल में हो, उन सभी का मूल संयम-चारित्र की अपेक्षा से पंचम साधुपद में ही है। संक्षेप में उनका नामनिर्देशपूर्वक उल्लेख किया है। भूतकाल में अनंतानंत मुनि महाराजा हो गये हैं, वर्तमानकाल में अढ़ीद्वीप में विचरते हैं, और भविष्यकाल में भी अनंतानंत मुनिमहाराजा होने वाले हैं।
सर्वक्षेत्र के और सर्वकाल के श्रीनमस्कार महामन्त्र के पंचम 'नमो लोए सव्व साहूरणं' पद की योग्यता प्राप्त किये हुए ऐसे सर्व भाव साधुओं को सर्वदा हमारा भावपूर्वक कोटि-कोटिशः वन्दन एव नमस्कार हो ।
श्री साधुपद का नमस्कारात्मक वान प्राकृत भाषा में विरचित 'सिरिसिरिवाल कहा' ग्रंथ में
श्री सिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१३०