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वन्दनीय, नमस्करणीय, पूजनीय, सेवनीय, स्मरणीय एवं आदरणीय हैं। इतना ही नहीं, किन्तु स्वर्ग:देवलोक के देवों और देवेन्द्रों को भी वन्दनीय एवं सेवनीय-पूजनीय हैं।
पंच परमेष्ठी में मूल पद कौन सा है?
श्रीनमस्कार महामन्त्र के प्रारम्भिक श्रीअरिहन्तादिक चारों पदों का मूल 'साधुपद' ही है। अर्थात् 'नमो लोए सव्व साहूरणं' यही मूल पद है। संसारी जीव जहां तक पंचम साधुपद को प्राप्त नहीं करता है वहां तक आगे के अन्य अरिहन्तादि पदों को भी प्राप्त नहीं कर सकता है। प्रथम मूल साधुपद प्राप्त होने के पश्चाद् उपाध्यायपद, प्राचार्यपद, अरिहन्तपद एवं अन्त में सिद्धपद प्राप्त हो सकता है। साधु से अरिहन्त बन सकते हैं, साधु से सिद्ध बन सकते हैं, साधु से प्राचार्य बन सकते है और साधु से उपाध्याय भी बन सकते हैं; कारण कि सबका मूल साधुपद ही है।
साधु के अन्य नाम
जैन शास्त्रों में साहु--साधु महाराज को अन्य नामों से भी पहिचाना जाता है। जैसे--अणगार, निर्ग्रन्थ, श्रमण, भिक्षुक, मुनि, व्रती तथा संयमी इत्यादि ।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१२८