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________________ भवसिन्धु यानी संसार-सागर से पार कराने के लिये 'सुन्दर स्टोमर-नौका' के समान हैं। (११) सच्चे साधु-श्रमण संसारवर्ती प्राणियों को मोक्ष की सच्ची राह बताने वाले, त्यागधर्म की प्रेरणा का पान कराने वाले तथा विश्व के सभी जीवों का परिपालन करने वाले 'उत्तम माता-पिता' के समान हैं। (१२) सच्चे साधु-श्रमण सद्धर्मरूपी फैक्ट्री का सर्वोत्तम माल बेचने वाले 'सेल्समेन' हैं। [सद्धर्म रूपी फैक्ट्री के समान श्रीअरिहंत परमात्मा हैं, उस फैक्ट्री में बनते हुए माल के समान श्रीसिद्धभगवंत हैं, फैक्ट्री के मैनेजर समान श्रीप्राचार्य महाराज हैं तथा फैक्ट्री के (सूत्रादिक) माल को बेचने वाले सेल्समेन के समान साधुश्रमण हैं ।] ऐसी अनेक उपमाओं से और अनेक सद्गुणों से समलंकृत पंचम पदे रहे हुए साधु-श्रमण संसार के पूर्ण त्यागी, महावैरागी, मुक्ति के अभिलाषी, सुसंयमी, सुज्ञानो, सुतपस्वी, सुध्यानी, मेरु पर्वत के जैसे धीर, समुद्र-सागर के जैसे गम्भीर, सूर्य के जैसे तेजस्वी-प्रतापी, चन्द्र के जैसे सौम्य-शीतल, भारण्ड पक्षी के जैसे अप्रमत्त, विश्व के सच्चे अणगार, सच्चे शणगार, सच्चे प्राधार, सच्चे तारणहार, सच्चे उपकारी हैं। इसलिये वे जनता के लिए श्री सिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१२७
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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