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अनेक उपमाओं से समलंकृत साधु-श्रमण ___ शास्त्रों में साधु-श्रमणों को अनेक उपमाओं से समलंकृत किया गया है । जैसे---
(१) सच्चे साधु-श्रमण 'अहिंसा-सिन्धु' अर्थात् दया के सागर हैं।
(२) सच्चे साधु-श्रमणा 'त्रिभुवन-बन्धु' अर्थात् स्वर्गमृत्यु-पाताल लोक के सभी प्राणियों को बन्धु के समान हैं।
(३) सच्चे साधु-श्रमण अठारह सहस्र शीलांगरथ को वहन करने में 'उत्तम वृषभ' अर्थात् अच्छे बैल के समान हैं।
(४) सच्चे साधु-श्रमण 'षट्पद-भ्रमर' के समान हैं । (जिस तरह पुष्प-फूल पर (रस चूसने के लिये) बैठा हुआ भ्रमर पुष्प को किलामरणा-पीड़ा न पहुंचा कर रस लेकर अपनी आत्मा को तृप्त करता है, उसी तरह साधु-श्रमण भी गृहस्थों के घर से निर्दोष भिक्षा-गोचरी लेते हैं। इसलिये वे भ्रमर के समान कहे गये हैं।]
(५) शास्त्र में सच्चे साधु-श्रमण को 'कुक्षि-संबल' कहा गया है । कुक्षि-संबल का अर्थ है-अपना उदर ही है संबल जिसका अर्थात् साधु-श्रमण कभी अशन-पान-खादिम
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श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१२५