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और सम्यग्चारित्र रूप रत्नत्रयी को आराधे वह साधु कहा जाता है।
(३) जो मोक्षमार्ग के मुसाफिर-प्रवासियों को सहाय. सहायता करे वह साधु कहा जाता है ।
(४) जो विश्व के समस्त जीवों को अर्थात् जीवमात्र को अभय देवे वह साधु कहा जाता है ।
(५) जो ज्ञान, ध्यान, तप, जप तथा संयमादिक में सदैव सावधान-तत्पर रहे वह साधु कहा जाता है ।
(६) जो पंच महाव्रतों का और छठे रात्रिभोजन व्रत का पालन करे वह साधु कहा जाता है । __(७) जो कंचन और कामिनी आदि का सर्वथा त्यागी हो वह साधु कहा जाता है।
(८) जो सभी प्रकार के उपसर्गों-उपद्रवों और परीषहों को समताभाव से सहन करे वह साधु कहा जाता है।
(E) जो सुख और दुःख में, शत्रु और मित्र में, मान और अपमान में, लाभ और अलाभ में समचित्त रहे वह साधु कहा जाता है ।
(१०) जो सयम के सत्ताईस गुणों का धारक हो वह साधु कहा जाता है।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन - १२४