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(६) जैसे मन्त्रशास्त्र में भी विद्वष भाव घातक वृत्ति के लिये श्याम-कृष्णवर्ण समर्थ कहा है, वैसे ही इधर भी राग, द्वेष और मोहादि शत्रों के सामने साधुओं में पूर्ण विद्वेष वृत्ति जागृत होने के कारण इस वृत्ति का पोषक वर्ण श्याम-कृष्ण ही साधुपद का माना है, वह उचित है । साधुपद का श्याम-कृष्णवर्ण प्रतिभाव सूचक है । साधु शब्द की व्याख्या,व्युत्पत्ति और अर्थ
'राधृच् साधृच संसिद्धौ' 'राध्' और 'साध्' धातुयें संसिद्धि अर्थ में आती हैं । 'साध्' धातु से कृदन्त का उण्' प्रत्यय संयुक्त हुग्रा, तब साध् + उण बना। ण् की इत् संज्ञा होकर, ण् का लोप होने पर ध् में उ मिलने पर 'साधु' शब्द बनता है। इस शब्द का व्युत्पत्तिपरक अर्थ इस तरह है। 'साध्नोतीति साधुः' जो मोक्षमार्ग को साधे वे साधु कहलाते हैं। अर्थात् जो मोक्षमार्ग की साधना के अनुकूल साधनों को स्वीकार करते हैं और प्रतिकूल या बाधक साधनों को दूर करते हैं, वे सभी साधु कहलाते हैं । तथापि कहा है कि---
(१) जो मोक्ष के साधक योगों को साधे वह साधु नाम से कहा जाता है।
(२) जो मोक्ष की साधनभूत सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१२३