SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३) संयमी साधु ज्ञान, ध्यान और क्रिया की साधना में सर्वदा सतत प्रयत्नशील रहते हैं। ज्ञान-ध्यानादिक में सतत श्रमशील ऐसे साधुओं के श्रम को स्पष्ट व्यक्त करने वाला वर्ण श्याम-कृष्ण है। इस कथन से 'श्याम-कृष्णवर्ण श्रमसूचक है' ऐसी प्रतीति सहज भाव से समझ में आ जाती है। (४) संयम धर्म की आराधना में मग्न ऐसे साधु की बाह्य मलिनता से दुगुंछा-जुगुप्सा नहीं करनी चाहिए । कारण कि--शरीर या वस्त्र मलिन होने से उनकी साधुता में किसी प्रकार की क्षति नहीं आ सकती। साधुता की क्षति तो वहाँ होती है जहाँ शरीर को स्नान कराकर वस्त्र को धोकर, उनकी टापटीप करने में गहरी रुचि होती है। मलिनता से घृणा, चिढ़ दूर करने के लिये साधुओं का अर्थात् साधुपद का वर्ण श्याम-कृष्ण कहा है । (५) पंच परमेष्ठियों में श्रीअरिहंतदेव, श्रीसिद्धभगवंत, श्रीप्राचार्यमहाराज, श्री उपाध्यायमहाराज, तथा श्री साधुमहाराज, पाँचों गुणी हैं। उनमें अन्तिम साधुपद है और वर्णों में अन्तिम श्याम-कृष्णवर्ण है । अन्तिम पद के साथ अन्तिम वर्ण का मेल भो सुयोग-योग्य-उचित है। वर्णों का विकास भी उत्तरोत्तर इस क्रम से होता है। इस अभिप्राय से भी पंचम साधुपद का वर्ण श्याम-कृष्ण ही कहा है, सो योग्य है। श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१२२
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy