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लोभ रूप चारों कषायों को जीतते हैं। दान, शील, तप और भाव रूप धर्म के चारों प्रकारों का अधिकार मुजब उपदेश देते हैं। मद्य, विषय, कषाय, निद्रा और विकथा रूप पाँचों प्रमादों को परिहरते हैं।
स्पर्शेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय तथा श्रवणेन्द्रिय ; इन पाँचों इन्द्रियों को वश (काबू) में रखते हैं। पृथ्वोकाय, अप्काय, तेउकाय, वाउकाय, वनस्पतिकाय तथा त्रसकाय, इन षट्कायिक जीवों का रक्षण करते हैं। हास्य, रति, अरति, भय, शोक और जुगुप्सा (दुगंछा) इन छह नोकषायों से दूर रहते हैं। प्राणातिपातविरमण, मृषावादविरमण, अदत्तादानविरमण, मैथुनविरमण, परिग्रहविरमण इन पाँच महाव्रतों और रात्रिभोजनविरमण व्रत इन छह व्रतों के धारक होते हैं । इहलोक भय, परलोक भय, प्रादान भय, अकस्माद् भय, मरण भय, अपयश भय और आजीविका भय इन सात प्रकार के भयों से रहित होते हैं ।
जातिमद, कुलमद, रूपमद, बलमद, लाभमद, श्रुतमद, तपमद और ऐश्वर्यमद इन आठ प्रकार के मदों से परे रहते हैं।
___ वसति आदि नौ प्रकार की ब्रह्मचर्य की गुप्तियों से अर्थात् नव वाडों से सर्वदा सुरक्षित हैं। क्षमा, मृदुता,
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-११७