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श्रीसाधुपद ( मुनिपद ) को पहिचान
जो मोक्षमार्ग को साधते हैं वे साधु-मुनि कहलाते हैं । वे ही मोक्षमार्ग की साधना के साधनों को अपनाते हैं । उसमें अनुकूल साधनों को स्वीकारते हैं और प्रतिकूल बाधकों को दूर करते हैं। ___ मोक्षमार्ग में आगे बढ़ने के लिये संयम में स्थित मुनि सर्व संग को तज कर अपने जीवन को भावाचार्य और उपाध्यायजी महाराज के चरणों में समर्पित करते हैं । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र रूप एक ही रत्नत्रय द्वारा केवल मोक्षमार्ग की आराधना में लीन रहते हैं। आर्त और रौद्र रूप दुर्ध्यान का परित्याग कर, धर्म और शुक्लरूप शुभध्यान को स्वीकार करते हैं। ग्रहणशिक्षा और प्रासेवनशिक्षा को सीखने के लिये उद्यत रहते हैं । रत्नत्रयी का पालन करने के लिये अहर्निश मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति इन तीनों गुप्तियों से युक्त रहते हैं। मायाशल्य, निदानशल्य और मिथ्यादर्शनशल्य इन तीनों से रहित होते हैं। रसगारव, ऋद्धिगारव और शातागारव इन तीनों गारवों से विमुक्त रहते हैं।
उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रूप त्रिपदी को अनुसरते हैं। राजकथा, स्त्रीकथा, भक्तकथा तथा देशकथा इन चारों विकथानों को नहीं करते हैं। क्रोध, मान, माया और
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-११६