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सरलता, निर्लोभता, तप, संयम, सत्य, शौच, आकिंचन और ब्रह्मचर्य, रूप दस प्रकार के यति-श्रमणधर्म को आदरते हैं। बारह प्रकार की भिक्षु पडिमा यानी साधु प्रतिमा तथा बारह प्रकार के तप, इन दोनों को पाराधते हैं। इस प्रकार मोक्षसाधना की सामग्री द्वारा अनेक प्रकार से साधु महात्मा सुन्दर आत्मसाधना करते हैं । ___संसार के सकल प्रपञ्चों को छोड़ कर, पापजन्य समस्त प्रवृत्तियों को त्याग कर, पाँच महाव्रतों की तथा छठे रात्रिभोजन व्रत की पालना रूप भीष्म प्रतिज्ञा कर, विश्व के सभी जीवों पर समभाववृत्ति धारण करने वाले, मन, वचन और काया से भी किसी का अनिष्ट और अहित नहीं चाहने वाले, समभाव साधना में संलग्न और सर्वदा अप्रमत्तदशा में संयमविशुद्ध अपने आदर्श जीवन में अहिंसा की सुन्दर सौरभ-सुगन्ध, सत्य का दिव्य प्रकाश, अचौर्य का नैसर्गिक अानन्द, ब्रह्मचर्य की अद्वितीय अनुपम शक्ति तथा अपरिग्रह का सम्यक् परिपालन, 'देहं वा पातयामि कार्य वा साधयामि' वाक्य को अन्तःकरण में आत्मसात् कर जिन्होंने प्रात्मा के अन्तर शत्रुओं का सर्वथा विध्वंस-विनाश करने का दृढ़ निश्चय कर अपने आत्मोन्नतिकारक शुभ कार्य का प्रारम्भ किया है, ऐसी सर्वदा वन्दनीय, अनुमोदनीय एवं प्रशंसनीय साधुता के धारक अनगार-मुनिराज को श्रमण, निर्ग्रन्थ, साधु एवं
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-११८