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है। इसलिये उपाध्याय जी महाराज का भी नील वर्ण कहा है । उपाध्याय पद का ध्यान और आराधन भी नील वर्ण से होता है।
- उपाध्याय पद का प्राराधन
इस पद की आराधना साधक के हृदय-मन्दिर में श्रु तज्ञान का दीपक जगा कर जड़-चैतन्य के भेद का दर्शन कराती है। सर्वत्र ज्ञान का प्रकाश फैलाती है। अज्ञान से अन्ध बने हुए को दर्शन और ज्ञान के दिव्य नयन प्रदान करती है तथा आत्मसाधना के साधकों की श्रेष्ठतम साथी है।
ऐसे बहुश्रुत महोपकारी महादानशील श्री उपाध्याय जी महाराज पच्चीस गुणों से समलंकृत हैं। इन गुणों को प्राप्त करने के लिये उनका आराधन पच्चीस भेद से किया जाता है।
उपाध्याय पद का आराधन श्री उपाध्यायजी महाराज की भक्ति करने से होता है। पढ़ने वाले को और पढ़ाने वाले को स्थान, आसन, वस्त्र आदि देते हुए और द्रव्यभाव से भक्ति करते हुए जीव उपाध्याय पद को आराधना करते हैं।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-११२