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भेद समझाने वाले हैं। भवभीरु हैं । साधना करने में धीर हैं। श्रुतज्ञान के धारक हैं। पत्थर में भी अंकुरा उगाने में समर्थ हैं। मूर्ख जैसे शिष्य को भी विद्वान् बना सकते हैं। सूत्र-अर्थ सर्व के ज्ञाता हैं। विश्व के बन्धु हैं। तीसरे भव में मोक्षरूपी लक्ष्मी को प्राप्त करने वाले हैं और सर्वजनों से पूजित हैं।
उपाध्याय पद की आराधना
नील वर्ग से क्यों ?
पंच परमेष्ठी के चतुर्थ पद में विराजमान श्री उपाध्यायजी महाराज का नीलवर्ण बताया है। इसलिये उपाध्याय पद की आराधना नील-लीले वर्ण से होती है ।
नील-लीले वर्ण से क्यों होती है ? उसके अनेक कारण (सहेतुक) हैं-- ___(१) जैसे मणियों में नीलमणि यानी नीलम की प्रभा शान्त और आकर्षक होती है वैसे श्री उपाध्यायजी महाराज की कान्ति प्रशान्त और मोहक होती है । नील वर्ण इसी भाव का सूचक है, इसलिये श्री उपाध्यायजी म. का नील वर्ण सहेतुक है । (२) श्र तज्ञान का पठन-पाठन करने वाले श्री उपा
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-११०