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इन बारह उपांग सूत्रों के ज्ञाता श्रीउपाध्यायजी महाराज हैं । ११ अंग और १२ उपांग मिल कर २३ होते हैं ।
(२४) चरणसित्तरी और (२५) करणसित्तरी मिल कर २५ हुए। अथवा (२४) नन्दीसूत्र और (२५) अनुयोगद्धारसूत्र मिल कर २५ हुए ।
इन पच्चोस गुगों से समलंकृत श्रीउपाध्यायजी महाराज हैं । अथवा ग्यारह अंग और बारहवें दृष्टिवादांग में आते हुए चौदह पूर्व मिल कर भी पच्चीस गुण से विभूषित श्रीउपाध्यायजी महाराज हैं ।
चौदह पूर्व के नाम (१) उत्पाद पूर्व (८) कर्मप्रवाद पूर्व (२) अग्रायणी पूर्व (६) पच्चक्खाणप्रवाद पूर्व (३) वीर्यप्रवाद पूर्व (१०) विद्याप्रवाद पूर्व (४) अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व (११) कल्याणप्रवाद पूर्व (५) ज्ञानप्रवाद पूर्व (१२) प्राणावाय पूर्व (६) सत्यप्रवाद पूर्व (१३) क्रियाविशाल पूर्व (७) आत्मप्रवाद पूर्व (१४) लोकबिन्दुसार पूर्व
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१०८