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________________ सादर सविनय बहुमानपूर्वकं भक्तिभाव से अहर्निश वन्दननमस्कार-प्रणाम करता हूँ । आप 'अरिहन्तादि पंचपरमेष्ठियों में तृतीय-तीसरे पद पर प्रतिष्ठित हैं । प्रापकी ग्रात्मा जिनेन्द्रदेव के शासन को सर्वदा समर्पित है । आपने अपने जीवन को संयम की सुन्दर आराधना से आदर्श एवं पवित्र बनाया है । आप स्वयं पञ्चाचार आदि का पालन करते हैं और अन्य अनेक ग्रात्मानों से भी करवाते हैं । आपकी शरण में आने वालों को आप 'योग' और 'क्षेम' प्रदान करने वाले हैं । आप स्वभाव से 'भीम' और 'कान्त' हैं । आप षटकाय के जीवों के संरक्षक हैं । आप पञ्चमहाव्रतों का सम्यक् परिपालन करने वाले हैं । आप विषय और कषाय से दूर हैं । आप पञ्च समितियों और तीन गुप्तियों के पालक हैं । आप आचार्य के छत्तीस गुणों से समलंकृत हैं । आप शासन के स्तम्भरूप और दिग्गज समान हैं | आपकी असीम कृपा से मैं भी आपके ही समान बनूँ; यही प्रार्थना एवं शुभ भावना है । [ ४ ] श्रीउपाध्याय पद नमो उवज्झायाणं उपाध्याय महाराजों को नमस्कार हो । सुत्तत्थवित्थाररगतप्पराणं, नमो नमो वायगकुंजराणं । श्रीसिद्धचक्र - नवपदस्वरूपदर्शन- ९४
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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