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अहर्निश अप्रमत्त दशा में वर्त्तने वाले, धर्मध्यानादि शुभध्यान को ध्याने वाले, गच्छ-समुदाय के साधुओं को चार प्रकार की शिक्षा देने वाले, इत्यादि गुणों से विभूषित प्राचार्य महाराज की द्रव्य और भाव से भक्ति करने से इस तीसरे प्राचार्यपद का आराधन हो सकता है ।
आचार्यपद का आराधक महामन्त्र और शुभध्यान द्वारा सुन्दर प्राचार्यपद का ध्यान करने वाले मनुष्य की आत्मा ही सूरिमन्त्र के पंच प्रस्थान प्राप्त कर प्राचार्य बन सकती है। प्राचार्यपद की आराधना करते हुए आराधक आत्मा ऐसी भावना अपने हृदयकमल में रखे कि मैं जैनशासन साम्राज्य का सम्राट बनने के लिए उपस्थित हूँ। तथा सम्राट के योग्य गुण प्राप्त करने के लिए मैं अाराधना कर रहा हूँ जिस तरह इस आचार्यपद की आराधना कर परदेशी राजा सूर्याभदेव हुए उसी तरह मैं भी इस आराधना से अपनी पूर्ण योग्यता प्रकट कर यह पद प्राप्त करूं । इस प्रकार की भावना आराधक प्रात्मा को करनी चाहिये ।
प्राचार्यपद की भावना
हे विश्ववंद्य ! हे शासन के सम्राट् ! हे भवसिन्धुतारक प्राचार्य भगवन्त ! अापके पवित्र चरणों में मैं
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-६३