________________
पीली-पीठी चोल कर सज्ज बने हुए प्राचार्य महाराज वरराजा के समान हैं । यह भाव प्रदर्शित करने के लिए प्राचार्य पद की आराधना पीतवर्ण से होती है।
मन्त्रशास्त्र में किसी को स्तब्ध और स्तम्भित करने के लिए पीतध्यान धरने का विधान है । महाप्रभावशाली प्राचार्य महाराज प्रसंग आने पर सबको स्तब्ध कर देते हैं। पर तन्त्र को स्तब्ध और स्तम्भित करने में प्राचार्य महाराज मुख्य हैं, इसलिए उनको पीतवर्ण कहा है । पर तन्त्र को स्तब्ध करने के लिए आचार्यपद का आराधन-ध्यान पीत-पीले वर्ण से ही होता है। ऐसे अनेक कारण पीतवर्ण से प्राचार्यपद की आराधना में कहे हैं।
प्राचार्यपद का अाराधन प्राचार्य महाराज के छत्तीस गुण हैं । 'पंचिदिय सूत्र' में छत्तीस गुण प्रतिपादित किए गए हैं। शास्त्र में छत्तीस गुण अनेक रीतियों से बताये हैं। छत्तोस छत्तीसियाँ आती हैं । छत्तीस गुणों से युक्त, पंचाचार का स्वयं पालन करने वाले और अन्य मुनियों द्वारा पालन कराने वाले, जिनभाषित दयामय-सत्यधर्म का शुद्ध सदुपदेश करने वाले,
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-६२