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(१) सूर्य के समान जिनेश्वरदेव और चन्द्र के समान
केवली भगवन्त के अभाव में प्राचार्य महाराज दीपक के समान हैं । जैसे- दीपक की शिखा पीत वर्ण की है वैसे प्राचार्य महाराज भी पीतवर्ण वाले हैं । इसलिए उनकी आराधना पीतवर्ण से होती है ।
(२) जिन - शासन में प्राचार्य महाराज राजा के समान हैं । राजा स्वर्ण के बनाये हुए मुकुट आदि अलंकारों से समलंकृत होते हैं । स्वर्ण का वर्ण पीत होता है । यही भाव समझाने के लिए प्राचार्यपद की आराधना पीतवर्ण से होती है ।
(३) परवादी रूपी हाथियों को भगाने के लिए आचार्य महाराज केसरी सिंह के समान हैं । जैसे - केसरी सिंह का वर्ण पीत - पीला है वैसे ही आचार्य महाराज का भी वर्ण पीत - पीला है । यही भाव स्पष्ट करने के लिए आचार्यपद की आराधना पीत वर्ण से होती है ।
(४) दूसरे के साथ वाद करते हुए जीत हो जाय तो जीतने वाले को विजयश्री वरती है । प्राचार्य महाराज परवादी के साथ वाद करके स्वसिद्धान्त का मण्डन और परसिद्धान्त का खण्डन कर विजय प्राप्त करते हैं । विजयश्री के साथ विवाह करने के लिए
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन - ९१