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डोरी से इन्द्रियरूपी तूफानी अश्व को वश में करने वाले हों, शुद्ध प्ररूपणा नाम के महान् गुण से जिनेश्वरदेवों के समान हों, जिनमें पागमादिशास्त्रों में कहे अनुसार छत्रीश छत्रीशो याने बारह सौ छन्नू (१२६६) गुण हों, जो उत्कृष्ट तीसरे भव में अवश्य मोक्ष में जाने वाले हों ऐसे भावाचार्य को (हम) सावधान होकर सर्वदा भावपूर्वक वन्दना करते हैं।
(१) ऐसे प्राचार्य भगवन्त नव प्रकार की ब्रह्मचर्य की
गुप्ति (बाड़) को धारण करते हैं, नव प्रकार के पापरूपी नियाणा को वर्जते हैं, नव कल्पीविहार करते हैं और नवतत्त्व के ज्ञाता हैं। इस तरह छत्तीस गुणों ( E+६+६+६=३६ ) से युक्त हैं ।
(२) साधु के २७ गुणों से सुशोभित जिनका शरीर है
और जो नवकोटि शुद्ध आहार लेते हैं, ऐसे प्राचार्य भगवन्त छत्तीस (२७+६=३६ ) गुणों से समलंकृत हैं।
(३) श्रेष्ठ २८ लब्धियों को प्रकट करने में अति निपुण
और पाठ प्रकार के प्रभावकपने को धारण करने वाले, ऐसे प्राचार्य भगवान छत्तीस (२+८=३६) गुणों से सुशोभित हैं।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-८९