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५ - ज्ञानाचारादि पञ्च आचारों से युक्त, ५ - ईर्यासमिति आदि पञ्च समितियों सहित, ३ - मनोगुप्ति आदि तीन गुप्तियों से युक्त,
३६ इन छत्तीस गुणों से समलंकृत प्राचार्य महाराज हैं।
'श्रीसंबोध प्रकरण' में भी प्राचार्य महाराज के छत्तीस गुणों का वर्णन किया गया है । 'श्री गच्छाचार पयन्ना' में भी आचार्य महाराज की महत्ता आदि का विशेष विवेचन उपलब्ध है।
छत्तीस गुणों के वर्णन के सम्बन्ध में शास्त्र में छत्तीस छत्तीसियाँ आती हैं । पंडित श्री पद्मविजयजी गणी ने श्रीनवपदजी की पूजा में भावाचार्य का वर्णन करते हुए कहा है कि
आचारज त्रीजे पदे, नमीये जे गच्छ धोरी रे, इन्द्रिय तुरंगम वश करे, जे लही ज्ञाननी दोरी रे; शुद्ध प्ररूपक गुरण थकी, जे जिनवर सम भाख्या रे, छत्रीश छत्रीशी गुणे, शोभित समयमां दाख्या रे; उत्कृष्टा त्रीजे भवे, पा ले अविचल ठारण रे, भावाचार ज वंदना, करीये थइ सावधान रे।
जो मुनियों के समुदाय के मुख्य संचालक हों, ज्ञान की
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-८८