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प्राचार्य महाराज के भी छत्तीस गुण शास्त्रकारों ने बतलाये हैं । 'पंचिदिय सुत्तं' याने 'गुरुस्थापना सूत्र' में कहा है किपचिदिय-संवरणो, तह नवविह-बंभचेर-गुत्ति-धरो। चउविह-कसाय-मुक्को, इअ अट्ठारस गुणेहिं संजुत्तो ॥१॥ पंच-महव्वय-जुत्तो, पंचविहायार-पालण-समत्थो। पंच-समियो त्ति-गुत्तो, छत्तीस गुणो गुरू मज्झ ॥ २ ॥
अर्थ- पाँचों इन्द्रियों के विषयों को वश में रखने वाले, नव प्रकार की ब्रह्मचर्य की गुप्ति को धारण करने वाले, चारों कषायों से मुक्त, इन अट्ठारह गुणों से युक्त; तथा पाँच महाव्रतों को धारण करने वाले, पाँच प्रकार के प्राचारों का पालन करने में समर्थ, पाँच समितियों और तीन गुप्तियों से युक्त, इस प्रकार छत्तीस गुणों वाले गुरु ( अर्थात् प्राचार्य महाराज ) हमारे गुरु हैं ।
सारांश यह है कि५ - स्पर्शनेन्द्रिय आदि पाँच इन्द्रियों का संवरण, ६ - वसति आदि नव प्रकार की ब्रह्मचर्य की गुप्ति
(बाड़ ) का संरक्षण, ४ - क्रोध आदि चार कषायों से मुक्त, ५ - प्राणातिपातविरमण आदि पञ्च महाव्रतों से युक्त,
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-८७