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________________ भावाचार्य इस तरह चार प्रकार के प्राचार्य कहे गए हैं । उनमें से भावाचार्य तीर्थंकर के समान होने से उनकी प्राज्ञा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।' __ ऐसे भावाचार्य माता-पिता और बन्धु आदि से भो, जीवों के अधिक हितसाधक हैं। शासन का साम्राज्य चलाने के लिए उन्हीं के पास अनेक शक्तियों, लब्धियों, और सिद्धियों आदि का विशेष बल है । धर्मसाम्राज्य के स्वामी प्राचार्य महाराज के चरणों में देवगण एवं चक्रवर्ती आदि सम्राट भी अपना सिर झुका कर और हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हैं। उन्हीं के सेवक बनने में जीव अपना गौरव समझते हैं। उन्हीं की कृपा अनेक जीवों को योग्य बनाती है और धर्ममार्ग में जोड़ती है । 'आचार्य' शब्द की व्याख्या, व्युत्पत्ति और अर्थ व्याकरण के नियमानुसार प्राङ्पूर्वक चर् धातु से आचार्य शब्द बनता है । प्राड्+चर्, ड्. की इत् संज्ञा और लोप होने पर प्राचर् बना। उससे ण्यत् प्रत्यय होकर पाचर्+ण्यत् बना, ण् और त् की इत् संज्ञा तथा लोप होने पर प्राचर+य बना। अजन्तांग को वृद्धि तथा सबको मिलाने पर रेफ् का ऊर्ध्वगमन हो जाने पर 'प्राचार्य' श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-८५
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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