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श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर परमात्मा के द्वारा अर्थ रूप में प्रकाशित और श्रुतकेवली गणधर महाराजा के द्वारा सूत्र रूप में गूंथी हुई द्वादशांगी के तत्त्वों का जगत् में जनता समक्ष जिनप्रवचन द्वारा प्रचार करना, साधु-साध्वी एवं श्रावक-श्राविका रूप चतुर्विध संघ को श्रीअरिहन्त केवली भगवन्त भाषित धर्ममार्ग पर चलाना, साधुओं को अपनी आत्म-साधना में आती हुई अनेक प्रकार की स्खलनामों से सावधान करने के लिए अहर्निश जागृत रहना तथा आत्म-साधना के पुनीत पन्थ से चलित हो गए हों, उनको वापिस मूलमार्ग में लाने के लिए सावधान करना इत्यादि कार्य तृतीय पद में प्रतिष्ठित प्राचार्य महाराज करते हैं।
प्राचार का शिक्षण अति गहन है । उसे पाने के लिए अनेक भव्य जीव प्राचार्य महाराज की शुभ निश्रा में आकर रहते हैं, इतना ही नहीं किन्तु अपना जीवन सर्वस्व उन्हीं के चरणों में समर्पित कर देते हैं।
प्राचार्य महाराज इस बात का पूर्ण ख्याल रख कर, शिष्यादिक को पुनः पुनः उनके प्राचार का स्मरण कराते हैं, स्खलना को सुधारते हैं, भूलों को रोकते हैं, प्रेरणा कर आचार में जोड़ते हैं। इतना ही नहीं आवश्यकता पड़ने पर कटु वचन कह कर भी शिष्यों को प्राचार में स्थिर
श्रीसिद्धचक्र नवपदस्वरूपदर्शन-८२