SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विश्व में वस्तु-पदार्थ का चाहे जितना अधिक मूल्य होवे तो भी उसकी पहिचान-जानकारी बिना, अमूल्य होते हुए भी उसका लाभ नहीं ले सकते हैं । इसलिए वस्तुपदार्थ की अपेक्षा भी उसकी जानकारी करने वाला विशेष महत्ता को पाता है। विश्व में जो श्रीअरिहन्तदेवों की विद्यमानता न होती तो जगत् के जीवों को श्रीसिद्धभगवन्तों की जान-पहिचान नहीं हो सकती थी। श्रीसिद्धभगवन्त शक्ति और प्रभाव में अधिक होने पर भी उनकी जानकारी दिखाने वाले श्रीअरिहन्त परमात्मा ही हैं। इसलिए उन्हीं को प्रथम नमस्कार किया है । पश्चात् श्रीसिद्धभगवन्तों को दूसरा नमस्कार किया है। . श्रीसिद्धपद का आराधन सकलसिद्धिदायक श्रीसिद्धचक्र के नवपद में महत्त्वपूर्ण इस द्वितीय श्रीसिद्ध पद का पाराधन उनके पाठ गुणों की अनुपमता में विशिष्ट रूप में होने से आठ भेदों से होता है। (१) ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से आत्मा में 'अनन्त ज्ञान गुरग' प्रगट होता है। (२) दर्शनावरणीय कर्म के क्षय से प्रात्मा में 'अनन्त दर्शन गुरण' प्रगट होता है। श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-७२
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy