________________
देह और वदन पर लालिमा तखरती हो उनको सुखो कहते हैं । सभी वर्णों में लालवर्ण सुख का चिह्न है। इससे ख्याल आ जाता है कि वह सुखी है । 'सम्पूर्ण सुखी सिद्ध भगवन्त ही हैं ।' अन्य कोई नहीं । लालवर्ण सुख का ख्याल दिखलाता है । वह ख्याल श्रीसिद्धभगवन्तों के बारे में भी ग्रा जाना चाहिए । इसलिए उनकी प्राराधना लालवर्ण से है ।
( २ ) श्रीसिद्ध भगवन्तों ने अग्नि जैसे लालचोल बन कर कर्मरूपी काष्ठ को भस्म किया है । यह भान कराने वाला लालवर्ण है, इसलिए श्रीसिद्ध भगवन्त को लालवर्ण कहा है |
( ३ ) रतिरक्त का सूचक वर्ण लाल कहा है । रक्त का अर्थ लाल भी होता है । मुक्तिरूपी वधू के साथ रक्त बन कर सतत रमरण करते हुए श्रीसिद्धभगवन्त रक्त यानी लाल हो हैं ।
( ४ ) मन्त्रशास्त्र में भिन्न-भिन्न कार्यों को सफल सिद्ध करने के लिए भिन्न-भिन्न वर्ण बताये हैं । उनमें किसी को वशीकरण करना हो तो वह काम लालवर्ण द्वारा होता है । सिद्धपद की आराधना करने वाले आत्मा को मुक्तिरूपी रमणी का वशीकरण करना है, इसलिए उसे सिद्धपद की आराधना
श्री सिद्धचक्र - नवपदस्वरूपदर्शन- ७०