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________________ (४) अतीर्थसिद्ध-- वह मरुदेवी माता आदि है । (५) गृहलिंगसिद्ध-- वह भरतचक्रवर्ती आदि है। (६) अन्यलिंगसिद्ध-- वह वक्कलचीरो आदि है । (७) स्वलिंगसिद्ध-- वह साधुवेश में सिद्ध है। (८) स्त्रीलिंगसिद्ध-- वह चन्दनबाला आदि है। (९) पुरुलिंगसिद्ध-- वह गौतमस्वामी आदि है । (१०) नपुंसकलिङ्गसिद्ध-- वह गांगेय आदि है । (११) प्रत्येकबुद्धसिद्ध-- वह करकण्डु आदि है । (१२) स्वयंबुद्धसिद्ध-- वह कपिल आदि है। (१३) बुद्धबोधितसिद्ध-- वे जो गुरु से बोध पाकर सिद्ध . हुए हैं। (१४) एकसिद्ध-- एक समय में एक ही प्रात्मा मोक्ष में जाती है । जैसे- प्रभु महावीर । (१५) अनेकसिद्ध-- एक समय में अनेक आत्माएँ मोक्ष में जाती हैं। जैसे-- श्रीऋषभदेव भगवान के साथ १०८ सिद्ध हुए हैं। इस तरह सिद्ध भगवन्तों के पन्द्रह भेद होते हैं । श्रीसिद्धपद का वर्ण लाल क्यों ? श्रीसिद्धपद की आराधना लालवर्ण से होती है, इसलिए उनका लालवर्ण कहा है । (१) विश्व भर में सम्पूर्ण सुखी केवल श्रीसिद्धभगवन्त ही हैं। जैसे व्यवहार में कहा जाता है कि जिनके श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-६९
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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