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अर्थात् सिद्धात्माओं का जन्म और मरण नहीं होने से वे सर्वदा स्वस्थिति में ही रहते हैं। इसलिए वह स्थिति अक्षयस्थिति कहलाती है, जो गुण रूप में है।
सिद्ध स्थिति की आदि तो है, किन्तु अन्त नहीं है । उसे सादि अनन्त स्थिति कहते हैं।
(६) अरूपित्व (अमूर्तपना)
नामकर्म का क्षय होने पर आत्मा को यह अरूपित्व (अरूपीपणा) गुण प्राप्त होता है ।
अरूपित्व अतीन्द्रिय है अर्थात् इन्द्रियाँ जिसे ग्रहण करने में असमर्थ रहती हैं, ऐसी अग्राह्य वस्तु को अरूपी कहते हैं।
श्रीसिद्धभगवन्त के शरीर नहीं होने से वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श भी नहीं हैं, इसलिए अरूपीपना प्राप्त होता है।
(७) अगुरुलघुत्व
गोत्र कर्म का क्षय होने पर आत्मा अगुरुलघुत्व गुण प्राप्त करता है जिससे प्रात्मा में न गुरुत्व रहता है और न लघुत्व तथा ऊँच-नीचपने का व्यवहार भी नहीं रहता है । इसलिए उसे अगुरुलघु भी कहते हैं ।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-६२