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सकता है । इस ज्ञान को अप्रतिपाति (सर्वदा रहने वाला) ज्ञान भी कहा जाता है। (२) अनन्तदर्शन
दर्शनावरणीय कर्म का सर्वथा क्षय होने पर आत्मा को यह अनन्तदर्शन अर्थात् केवलदर्शन गुण प्राप्त होता है। इससे वह लोकालोक के स्वरूप को समस्त प्रकार से देख सकता है। (३) अव्याबाध सुख
वेदनीय कर्म का सर्वथा क्षय होने पर आत्मा को यह अव्याबाध सुख अर्थात् सर्व प्रकार की पीड़ा रहित-निरुपाधिकपना प्राप्त होता है । (४) अनन्त चारित्र.. मोहनीय कर्म का क्षय होने पर आत्मा को यह अनन्त चारित्र गुण प्राप्त होता है। इसमें क्षायिक सम्यक्त्व और यथाख्यात चारित्र का समावेश होता है। इसलिए श्रीसिद्धभगवन्त स्वस्वभाव में सर्वदा अवस्थित रहते हैं, वहाँ पर यही चारित्र है । उसको अनन्त चारित्र कहते हैं । (५) अक्षय स्थिति
आयुष्य कर्म का क्षय होने पर आत्मा का विनाश नहीं होवे ऐसी यह अनन्त स्थिति-अक्षयस्थिति प्राप्त होती है ।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-६१