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(८) अनन्तवीर्य
अन्तराय कर्म का क्षय होने पर प्रात्मा को अनन्तवीर्य (अनन्तदान, अनन्तलाभ, अनन्तभोग, अनन्त उपभोग तथा अनन्तवीर्य) गुण प्राप्त होता है । ___ समस्त लोक को अलोक करना हो या अलोक को लोक करना हो ऐसी शक्ति स्वाभाविक रूप से सिद्ध परमात्मा में विद्यमान होने पर भी कभी उन्होंने अपने वीर्यशक्ति का उपयोग किया नहीं है और करने वाले भी नहीं, कारण कि- पुद्गल के साथ होने वाली प्रवृत्ति इनका धर्म नहीं है । ये तो इस गुण से अपने आत्मिक गुणों को जिस तरह से हैं उसी तरह से धारित रखते हैं, फेरफार नहीं होने देते ।
इस तरह सिद्धभगवन्त आठों गुणों से युक्त हैं ।
सिद्धभगवन्तों के इकतीस गुराण 'इगतीसाए सिद्धाइगुणेहि'-- सिद्धभगवन्तों के इकतीस गुण हैं । वे इस प्रकार हैं- संस्थान ५, वर्ण ५, गन्ध २, रस ५, स्पर्श ८ और वेद ३, इनका सर्वथा अभाव होने से २८ गुण, कायरहितपना २६, संगरहितपना ३० और जन्मरहितपना ४१ । अर्थात् मोक्ष में विद्यमान सिद्धभगवन्त (१) चौरस संस्थान रहित हैं ।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-६३