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सम्पूर्ण वर्णन नहीं कर सकते हैं; ऐसा अद्भुत और अगोचर श्रीसिद्धभगवन्त का स्वरूप है। जैसे- जंगल में निवास करने वाला भील नगर का स्वरूप जानने पर भी उसके गुणों का वर्णन करने में समर्थ नहीं हो सकता है, वैसे ही सिद्धपद में विराजित श्रीसिद्धपद भगवन्तों के गुणों को यथास्थितपने और सम्पूर्णपने जानने पर भी श्रीअरिहन्तकेवलज्ञानी उनका सम्पूर्ण वर्णन करने में समर्थ नहीं होते हैं।
संसार के समस्त सुख को अनन्त वर्ग करके प्राप्त हुई सुखराशि से भी यदि श्रीसिद्धभगवन्त के एक प्रदेश के सुख की तुलना करें तो भी वह समान नहीं ठहरती है । श्रीसिद्धभगवन्त के सुख का एक अंश भी लोकाकाश में न समा सके इतना श्रीसिद्धभगवन्त को सुख है।
अनन्त गुणों के धारक श्रीसिद्धभगवन्त अनन्त, अनुतर, अनुपम, शाश्वत और सदा स्थायी आनन्द को देने वाले मोक्ष के शाश्वत सुख के भोक्ता हैं तथा अनन्तज्ञानी श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर देवों द्वारा बताये हुए मोक्षमार्ग में आसन्नभव्यात्माओं को प्रयारण करने की उत्तम प्रेरणा देने वाले महान् उपकारी हैं। ऐसे श्रीसिद्धभगवन्त कल्याणकामी आत्माओं द्वारा अवश्यमेव आराधनीय हैं ।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-५८