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एक व्यक्ति ने अपने लक्ष्य की ओर बाण पहुँचाने के लिए हाथ में धनुष लेकर बाण छोड़ा। पूर्वप्रयोग से जहाँ लक्ष्य था वहीं यह बाण पहुँच जाता है । इसी तरह कर्म रहित अात्मा भी एक समय में मोक्षस्थान में पहुँच जाता है।
(२) जिस प्रकार कुम्भकार अपने चाक को लकड़ी के
डण्डे से घुमा कर छोड़ देता है तब भी वह चाक पहले के भरे हुए वेग के वश से घूमता रहता है, उसी प्रकार जीव भी संसार अवस्था में मोक्षप्राप्ति के लिए बराबर अभ्यास करता था, मुक्त होने पर यद्यपि उसका यह अभ्यास छूट जाता है तथापि वह पहले के अभ्यास से ऊपर को गमन करता है ।
(३) मुक्त जीव लेपरहित तूम्बे की भाँति ऊपर को जाता
है । तूम्बे पर जब तक मिट्टी का लेप रहता है तब तक वह वजनदार होने से पानी में डूबा रहता है पर ज्योंही उसकी मिट्टी गल कर दूर हो जाती है त्योंही वह पानी के ऊपर पा जाता है । इसी प्रकार यह जीव जब तक कर्मलेप सहित होता है तब तक संसार-समुद्र में डूबा रहता है पर ज्योंही इसका कर्मलेप दूर होता है त्योंही यह ऊपर उठ कर लोकशिखर पर पहुँच जाता है ।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-५५