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भिन्न फल के लिये भिन्न-भिन्न वर्गों की व्यवस्थित व्यवस्था प्रतिपादित की है। उसमें शान्ति के लिये श्वेत-उज्ज्वल वर्ण निश्चित किया है ।
इसलिये शान्त-प्रशान्त होने का इच्छुक अाराधक उस फल की प्राप्ति के लिये अभी ध्यान-आराधना श्वेत वर्णे करता है और भविष्य में भी श्वेत वर्ण से
ही अरिहन्तपद की आराधना करेगा। (५) साकार श्री अरिहन्त-तीर्थंकर भगवन्तों के देह का
मांस और रुधिर गाय के दूध सदृश श्वेत-उज्ज्वल है। यह निमित्त पाकर भी उनकी आराधना श्वेतवर्ण से ही करनी योग्य है ।
श्रीअरिहन्तपद का आराधन विश्व में कार्यसाधक तीन वस्तुओं की विशेषता मान्य है। मन्त्र, तन्त्र और यन्त्र । मन्त्रों में सर्वश्रेष्ठ श्रीनमस्कार महामन्त्र है; तन्त्रों में सर्वश्रेष्ठ विशुद्ध सामायिक है और यन्त्रों में सर्वश्रेष्ठ श्रीसिद्धचक्र यन्त्र है। इन तीनों की उत्तम पाराधना जिसके जीवन में हो जाय वह आराधक आत्मा संसार-सागर से पार उतरती है । __महत्त्वपूर्ण कार्य करने के लिए मनुष्य में आध्यात्मिक शक्ति चाहिए। आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने के लिए
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-४६