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________________ अनन्त शक्ति के कोष श्रीअरिहन्तादि पंच परमेष्ठियों के साथ अपना सम्बन्ध स्थापित करना अति अनिवार्य है। पंच परमेष्ठियों में प्रथम स्थान श्रीअरिहन्त-तीर्थंकर पर. मात्मा का है। श्रीअरिहन्त पद का आराधन विधिपूर्वक करना चाहिए जिससे आराधक श्रीअरिहन्त-तोर्थंकर भगवन्तों के बारह गरण प्राप्त कर सके । श्रीअरिहन्तपद का पाराधन-जिनमूत्ति की विशुद्ध आशय से द्रव्य-भावपूर्वक भक्ति करनी, जिनाज्ञा का पालन करना तथा श्रीजिनेश्वरदेव के कल्याणकों के दिनों में विशेष प्रकार से भक्ति करनी । इस भाँति अरिहन्तपद की आराधना होती है। अरिहन्तपद की आराधना का ध्येय श्वेत वर्ण से श्रीअरिहन्तपद की आराधना करने वाली प्रात्मा कर्म के महान् सुभट मोहशत्र का विनाश करने के लिए समर्थ, वीर, बहादुर बने और स्वयं अरिहन्त परमात्मा की स्थिति प्राप्त करने की योग्यता प्राप्त करे, यही इस आराधना का ध्येय है। श्रीअरिहन्तपद की आराधना के दृष्टान्त अरिहन्तपद की आराधना से ही देवपाल राजा राज्य के स्वामी हुए हैं और कात्तिक श्रेष्ठी इन्द्र बने हैं । श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-५०
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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