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________________ संकेत मिलता है। डॉ. हर्मन याकोबी ने इस सूर्यग्रहण का काल 14 अगस्त 733 ई. निश्चित किया है। अतः इन सब उल्लेखों से वाक्पतिराज का समय आठवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध (725से 750 ई) स्वीकार किया जा सकता है। आचार्य बलदेव उपाध्याय ने भी अपना यही अभिमत व्यक्त किया है। गउडवहो की प्रारम्भिक 61 गाथाओं में विष्णु, गणेश, गौरी, सरस्वती, लक्ष्मी, आदि की स्तुति की गयी और बाद की 37 गाथाओं में कवि प्रशंसा के अन्तर्गत कवि और काव्य की महत्ता प्रतिपादित की गयी है। इसी प्रसंग में प्राकृत काव्य का वैशिष्ट्य प्रकट किया गया है और प्राकृत भाषा को सभी भाषाओं का आधार बताया गया है। इसके बाद काव्य की कथा का शुभारम्भ करते हुए कथानायक यशोवर्मा के गुणों को उद्घाटित किया गया है। बाद की 93 गाथाओं में यशोवर्मा की शक्ति और सौन्दर्य का काव्यात्मक वर्णन कवि ने किया है। यशोवर्मा को बालक हरि का अवतार बतलाते हुए कवि ने प्रलयकाल का वर्णन भी किया है। इस प्रसंग में स्वर्ग की सम्पदाएँ भी वर्णित हुई हैं। यशोवर्मा की वीरता से पराजित शत्रुओं की विधवाएँ जो विलाप करती हैं वह बड़ा ही कारणिक दृश्य है । यशोवर्मा वर्षा ऋतु के बाद विजय यात्रा पर निकलता है। इसी प्रसंग में शरद ऋतु एवं विन्ध्यवासिनी देवी का वर्णन हुआ है। गौड़ नृप यशोवर्मा के भय से पलायन कर जाता है, किन्तु अन्त में वह युद्ध में मारा जाता है। यही गौड नरेश की वध की प्रमुख घटना इस काव्य की है। युद्ध के बाद यशोवर्मा समुद्रतट की ओर प्रयाण करता है। वहाँ से बांगदेश और फिर दक्षिण के समुद्रतट की ओर जाता है। पारसीक, कोकण, नर्मदा, मस्देश, श्रीकण्ठ, कुरक्षेत्र अयोध्या, आदि स्थानों की यात्रा वर्णन भी कवि ने प्रस्तुत किये हैं। इसी प्रसंग में तालाब ,नदी, पर्वत, वन वृक्ष आदि के काव्यात्मक वर्णन इस ग्रन्थ में प्राप्त होते हैं। यशोवर्मा की यह विजययात्रा महाराजा रघु की दिग्विजय यात्रा का स्मरण करती है। अन्त में कवि ने अपनी प्रशस्ति लिखी है। ग्रन्थ के कथानायक यशोवर्मा के उतरार्द्ध जीवन की कथा इस काव्य में नहीं है। महाकाव्यों की जो सुनिश्चित श्रेणियां हैं, उनमें गउडवहो को रखना इसके विशिष्ट्य स्वरूप को सीमित करना है। यह महाकाव्य न पौराणिक है, न पूर्णतया प्राकृत रत्नाकर 091
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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