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________________ किया है। इसमें प्राकृत के इतने शब्द रूपों का प्रयोग हुआ है कि यह ग्रन्थ प्राकृत के शब्दकशेष जैसा है। इस ग्रन्थ में प्रथम सर्ग से लेकर सांतवे सर्ग की 93 वीं गाथा तक महाराष्ट्री प्राकृत के नियमों के अनुसार संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, कृदन्त आदि शब्दों के उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं जैसे तइया वणिब सुसाहिं निव सुण्हा -वल्ल्हाओ ता दिट्ठा। पाहाण-पुब्ठिआहि व पासाण व थम्भ -लग्गाहि ॥ 2.68 ॥ 94. कुमारपालप्रतिबोध (कुमारवालपडिबोहो) सोमप्रभसूरि ने वि. सं. 1241 में महाराष्ट्री प्राकृत में कुमारपालप्रतिबोध ग्रन्थ की रचना की थी। प्रस्तुत ग्रन्थ में पाँच प्रस्ताव हैं। पाँचवां प्रस्ताव अपभ्रंश में है। इस ग्रन्थ में गुजरात के राजा कुमारपाल का चरित्र वर्णित है। राजा कुमारपाल आचार्य हेमचन्द्र के उपदेशों से प्रभावित होकर जैन धर्म को अंगीकार करते हैं। उनको प्रदान की गई शिक्षाओं के दृष्टांतों के रूप में इस ग्रन्थ में कई कथानक गुम्फित हुए हैं। श्रावक के 12 व्रतों एवं उनके अतिचारों के रहस्यों को अवगत कराने के लिए विभिन्न लघु कथानक आए हैं। तीसरे प्रस्ताव में शीलव्रत का पालन करने वाली शीलवती की कथा उपदेशप्रद एवं मनोरंजक है। द्यूतक्रीड़ा के दोष को दिखलाने के लिए नल की कथा आई है। इन लघु कथाओं के माध्यम से व्यक्ति के नैतिक उत्थान एवं चारित्रिक विकास का प्रबल प्रयास किया गया है। उपदेश तत्त्व एवं धार्मिक वातावरण की प्रधानता होते हुए भी काव्यात्मक सौन्दर्य की दृष्टि से यह ग्रन्थ अद्वितीय है। दमयंती के स्वयंवर प्रसंग की यह गाथा दृष्टव्य है, जहाँ रूपक एवं अनुप्रास अलंकार का माधुर्य एक साथ प्रस्फुटित हुआ है - कलयंठकठि! कंठे कलिंगवइणो जयस्स खिव मालं। करवालराहुणा जस्स कवलिया वेरि-जस-ससिणो॥..(प्रथम प्रस्ताव) अर्थात् - हे कोयलकंठी! कलिंगपति जय के गले में माला डाल, जिसकी तलवार रूपी राहू के द्वारा वेरी रूपी चन्द्रमा ग्रसित किया गया है। कुमारपालप्रतिबोध को जिनधर्मप्रतिबोध भी कहा जाता है । सोमप्रभ क जन्म प्राग्वाट कुल के वैश्य परिवार में हुआ था। संस्कृत और प्राकृत के ये प्रकांड 740 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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