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________________ छंदों को समझाने हेतु हेमचन्द्र के छंदोनुशासन, श्री हर्ष की रत्नावली नाटिका आदि के उदाहरण मिलते हैं। नन्दिषेणकृत अजितशान्तिस्तव के ऊपर लिखी हुई जिनप्रभ की टीका में कवि दर्पण का उल्लेख मिलता है। यह टीका संवत् 1365 में लिखी गई थी। दुर्भाग्य से कविदर्पण और उसके टीकाकार का नाम अज्ञात है। मूल ग्रन्थकर्ता और टीकाकार दोनों जैन थे और दोनों ने हेमचन्द्र के छन्दोनुशासन के उद्धरण दिये हैं। जिनप्रभ के समय छन्द का यह ग्रन्थ सुप्रसिद्ध था, इसलिए अजितशान्तिस्तव के छन्दों को समझाने के लिए जिनप्रभ ने हेमचन्द्र के छन्दोनुशासन के स्थान पर कविदर्पण का ही उपयोग किया है। प्रोफेसर वेलनकर ने कविदर्पण का रचनाकाल ईसवी सन् की 13वीं शताब्दी माना है । छन्दोनुशासन के अतिरिक्त इस ग्रन्थ में भी हर्ष की त्नावलि नाटिका तथा जिनसूरि, सूरप्रभसूरि और तिलकसूरि की रचनाओं के उद्धरण दिये हैं। सिद्धराज जयसिंह, कुमारपाल, भीमदेव और शांकभरिराज नामके राजाओं का यहाँ उल्लेख है। टीका में सूर पिंगल और त्रिलोचनदास की संस्कृत कृतियों में से तथा स्वयंभू मनोरथ और पादलिप्त की प्राकृत कृतियों में से उद्धरण दिये गये हैं। 78. कल्लाणलोयणा कल्लाणालोयणा के कर्ता अजितब्रह्म या अजितब्रह्मचारी हैं। इनका समय विक्रम की 16 वीं शताब्दी माना जाता है। इनके गुरु का नाम देवेन्द्रकीर्ति था, और भट्टारक विद्यानन्दि के आदेश से भृगुकच्छ में इन्होंने हनुमच्चरित्र की भी रचना की थी। यह ग्रंथ 54 गाथाओं में समाप्त होता है। 79. कसायपाहुडं आचार्य धरसेन के समकालीन आचार्य गुणधर हुए हैं। आचार्य गुणधर को द्वादशांगी का कुछ श्रुत स्मरण था। वे पाँचवें ज्ञानप्रवादपूर्व की दशम वस्तु के तीसरे कसायपाहुड के पारगामी थे। इसी आधार पर उन्होंने कषायप्राभृत नामक सिद्धान्त ग्रन्थ की रचना शौरसेनी प्राकृत में की। आचार्य गुणधर ने इसकी रचना कर नागहस्ति और आर्यमंक्षु को इसका व्याख्यान किया था। इस ग्रन्थ में मुख्य रूप से क्रोधादि कषायों की राग-द्वेष परिणति, उनके प्रकृति, स्थिति, अनुभाग प्राकृत रत्नाकर 055
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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