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________________ प्रकाशकीय प्राकृत भाषा एवं साहित्य के इतिहास में अनेक ग्रन्थ और ग्रन्थकार भारतीय साहित्य की निधि के रूप में सुरक्षित हैं। इन पर प्राचीन विद्वानों ने यत्र-तत्र प्रकाश डाला है। किन्तु सभी प्राकृत भाषाओं, उनके ग्रन्थों तथा प्राकृत रचनाकारों के सम्बन्ध में संक्षेप में किन्तु प्रामाणिक जानकारी की आवश्यकता अनुभव की जा रही थी। प्राकृत भाषा के प्रतिष्ठित प्राध्यापक एवं वरिष्ठ विद्वान् प्रोफेसर प्रेम सुमन जैन ने प्राकृत रत्नाकर कोशग्रन्थ तैयार कर इस कमी को पूरा किया है। यह प्रसन्नता की बात है कि यह महत्वपूर्ण पुस्तक प्रोफेसर जैन ने श्रवणबेलगोला में रहते हुए लिखी थी और अब उसे प्रकाशित करने का सौभाग्य भी हमारे प्राकृत संस्थानको प्राप्त होरहा है। ___ परमपूज्यराजगदगुरु कर्मयोगी स्वस्तिश्री चारूकीर्ति भट्टारक महास्वामी जी श्रीक्षेत्र श्रवणबेलगोला की एक चिर प्रतीक्षित इच्छा इस पुस्तक से पूरी हुई है। प्रोफेसर जैन के प्रति पूज्य स्वामी जी की हार्दिक शुभकामना है कि डॉ. जैन इसी प्रकार प्राकृत श्रुतसेवा में संलग्न बने रहें। आशा है, प्राकृत के प्रेमी एवं शोधार्थी पाठक इस प्राकृत रत्नाकर की निधियों से लाभान्वित होंगे। पुस्तक के प्रकाशन सौजन्य हेतु सुश्रावक धर्मानुरागी श्रीमान् तेजराज बांठिया बैंगलोरु एवं उनके परिवार के प्रति हार्दिक आभार। आकर्षक प्रकाशन हेतु प्रिंटिग प्रेस एवं कार्यालय सहयोगियों को धन्यवाद। महावीर जयन्ती, 2012 प्रो. बी. एससनव्या निदेशक प्रभारी
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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