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________________ छ: अध्ययनों में इनका विवेचन किया गया है। आवश्यक का आध्यात्मिक दृष्टि से तो महत्त्व है ही, दैनिक जीवन में भी इसके पालन से क्षमा, आर्जव आदि गुणों का विकास होता है। यह सूत्र श्रमण-श्रमणियों के साथ-साथ श्रावकश्राविकाओं के लिए भी पाप-क्रियाओं से बचकर धर्म मार्ग में अग्रसर होने की प्रायोगिक विधि प्रस्तुत करता है। 46. इसिभासियं प्रत्येक बुद्धों द्वारा भाषित होने से इस प्राकृत ग्रन्थ को ऋषिभाषित कहा है। इसमें नारद, अंगरिसि (अंगिरस) वल्कचीरि, कुम्मापुत्त, महाकासव, मंखलिपुत्त, जण्णवक्क, यावलक्य, बाहुक, रामपुत्त, अम्मड, मायंग, वारत्तय, इसिगिरि, अदालय, दीवायण, सौम, यम, वरुण, वेसमण आदि 45 अध्ययनों में प्रत्येकबुद्धों के चरित्र दिये हुए हैं। इसमें अनेक अध्ययन पद्य में हैं। इस सूत्र पर भद्रबाहु द्वारा नियुक्ति लिखे जाने का उल्लेख है जो आजकल अनुपलब्ध है। यह ग्रन्थ प्राकत भारती अकादमी, जयपुर एवं जैन विश्व भारती लाडनूं से प्रकाशित है। 47. उत्तराध्ययनसूत्र (उत्तरज्झयणाई) उत्तराध्ययन जैन अर्धमागधी आगम साहित्य का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आगम ग्रन्थ माना जाता है। इसे महावीर की अन्तिम देशना के रूप में स्वीकार किया गया है। उत्तराध्ययन की विषयवस्तु प्राचीन है। समवायांग एवं उत्तराध्ययननियुक्ति में उत्तराध्ययन की जो विषयवस्तु दी गई है, वह उत्तराध्ययन में ज्यों की त्यों प्राप्त होती है। उत्तराध्ययन के छत्तीस अध्ययन हैं, इनमें संक्षेप में प्रायः सभी विषयों से सम्बन्धित विवेचन उपलब्ध है। धर्म, दर्शन, ज्ञान, चारित्र आदि की निर्मल धाराएँ इसमें प्रवाहित हैं। जीव, अजीव, कर्मवाद, षड्द्रव्य, नवतत्त्व, पार्श्वनाथ एवं महावीर की परम्परा प्रभृति सभी विषयों का इसमें समावेश हुआ है। दार्शनिक सिद्धान्तों के साथ-साथ इसमें बहुत सारे कथानकों एवं आख्यानों का भी संकलन हुआ है। इसमें वर्णित नमिप्रव्रज्या, हरिकेशी, चित्त-संभूति, मृगापुत्र, इषुकारीय, 32 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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