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ज्ञान के वर्णन के पश्चात् षडावश्यक का निरूपण है। उसमें सर्वप्रथम सामायिक है। सामायिक के अध्ययन का पश्चात् ही अन्य आगम साहित्य के पढ़ने का विधान है। सामायिकसूत्र के प्रारम्भ में नमस्कार मन्त्र आता है। इसलिए नमस्कार मन्त्र की उत्पत्ति, निक्षेप, पद, निक्षेप, पदार्थ, प्ररूपणा, वस्तु, आक्षेप, प्रसिद्धि, क्रम और प्रयोजन इन ग्यारह दृष्टियों से नमस्कार महामन्त्र पर चिन्तन किया गया है, जो साधक के लिए बहुत ही उपयोगी है। सामायिक में तीन करण और तीन योग से सावध प्रवृत्ति का परित्याग होता है। दूसरा अध्ययन चतुर्विशतिस्तव का है। इसमें नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन छह निक्षेपों की दृष्टि से प्रकाश डाला गया है। तृतीय अध्ययन वन्दना का है। चितिकर्म, कृतिकर्म, पूजाकर्म और विनयकर्म ये वन्दना के पर्यायवाची है। चतुर्थ अध्ययन का नाम प्रतिक्रमण है। प्रमाद के कारण आत्मप्रभाव से आत्मा मिथ्यात्व आदि स्थान में जाता है, उसका पुनः अपने स्थान में आना प्रतिक्रमण है। पाँचवें अध्ययन में कायोत्सर्ग का निरूपण है। कायोत्सर्ग और व्युत्सर्ग ये एकार्थवाची है। यहाँ पर कायोत्सर्ग का अर्थ वर्ण चिकित्सा है। आवश्यक का छठा अध्ययन प्रत्याख्यान है। प्रत्याख्यान, प्रत्याख्याता, प्रत्याख्येय, शब्द, कथनविधि और फल इन छह दृष्टियों से प्रत्याख्यान का विवेचन किया गया है। ___ श्रमण जीवन को महान एवं तेजस्वी बनाने के लिए श्रमण जीवन से संबंधित सभी विषयों की चर्चाएँ प्रस्तुत नियुक्ति में की गई हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस नियुक्ति का अत्यधिक महत्वपूर्ण है। ऐसे अनेक महत्वपूर्ण तथ्य इसमें उजागर हुए हैं जो इससे पूर्व की रचनाओं में कहीं पर भी दृष्टिगोचर नहीं होते । 45. आवश्यकसूत्र (आवस्सयं)
आवश्यकसूत्र जीवन-शुद्धि और दोष-परिमार्जन का महासूत्र है। आवश्यक साधक की आत्मा को परखने एवं निखारने का महान उपाय है। अवश्य' से आवश्यक बना है, अर्थात् जो चतुर्विध संघ के लिए प्रतिदिन अवश्य करने योग्य है, वह आवश्यक है। आवश्यक के छः प्रकार बताये गये हैं - 1. सामायिक 2. चतुर्विशतिस्तव 3. वन्दना 4. प्रतिक्रमण 5. कायोत्सर्ग 6.प्रत्याख्यान।
प्राकृत रत्नाकर 0 31