SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 373
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 435.सीताचरित __इस ग्रन्थ में 465 प्राकृत गाथाओं में भुवनतुंगसूरि ने सीता का चरित्र लिखा है। सीताचरित्र पर प्राकृत में अज्ञात कर्तृक दो और रचनायें मिलती हैं। एक का ग्रंथाग्र 3100 या 3400 है। दूसरे की हस्त. प्रति में सं. 1600 दिया गया है। 436. सुदर्शनाचरित भड़ौच (भृगुकच्छ) के शुकुनिकाविहार-जिनालय के माहात्म्य को प्रकट करने के लिए सुदर्शना की कथा पर ज्ञातकर्तृक दो प्राकृत रचनाएँ, एक संस्कृत रचना तथा एक अज्ञातकर्तृक प्राकृत रचना मिली है। अज्ञातकर्तृक प्राकृत रचना की हस्तलिखित प्रति सं. 1244 की मिली है। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि यही पश्चाद्वर्ती कृतियों का आधार रही हैं। द्वितीय रचना भी प्राकृत में है। इसके रचयिता मलधारी देवप्रभसूरि (तेरहवींशती का उत्तरार्ध) हैं। यह 1887 शोक प्रमाण ग्रन्थ है। 437.सुदंसणाचरिय - इसका दूसरा नाम शकुनिकाविहार भी है। यह एक प्राकृत ग्रन्थ है जिसमें कुल मिलाकर 4002 गाथाएँ हैं। बीच बीच में शर्दूलविक्रीडित आदि छन्दों का प्रयोग हुआ है। इसमें धनपाल, सुदर्शन, विजयकुमार, शीलावती, अश्वावबोध, भ्राता, धात्रीसुत और धात्री ये आठ अधिकार हैं, जो 16 उद्देश्यों में विभक्त हैं। सुदर्शना सिंहद्वीप में श्रीपुरनगर के राजा चन्द्रगुप्त और रानी चन्द्रलेखा की पुत्री थी। पढ़ लिखकर वह बड़ी विदुषी और कलावती हो गई। एक बार उसने राजसभा में ज्ञाननिधि पुरोहित के मत का खण्डन किया। धर्म भावना से प्रेरित हो वह भृगुकच्छ की यात्रा पर गई और वहाँ उसने मुनिसुव्रत तीर्थंकर का मन्दिर तथा शकुनिकाविहार नामक जिनालय का निर्माण कराया।इसके रचियता तपागच्छीय जगच्चन्द्रसूरि के शिष्य देवेन्द्रसूरि हैं। कर्ता ने अपने विषय में कहा है कि वे वित्रपालकगच्छीय भुवनचन्द्र गुरु उनके शिष्य देवभद्र मुनि और उनके शिष्य जगच्चन्द्रसूरि के शिष्य थे। उनके एक गुरुभ्रता विजयचन्द्रसूरि ने इस ग्रन्थ के निर्माण में सहायता दी थी। प्राकृत रत्नाकर 0365
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy