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________________ अध्यायों में संस्कृत एवं आठवें अध्याय 'प्राकृत पाद' में प्राकृत व्याकरण का अनुशासन किया है। ग्रन्थ के इस स्वरूप में ही क्रमदीश्वर हेमचन्द्र का अनुकरण करता है। अन्यथा प्रस्तुतीकरण और सामग्री की दृष्टि से उनमें पर्याप्त भिन्नता है। वस्तुतः वररुचि के 'प्राकृत प्रकाश' और 'संक्षिप्तसार' में बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध दिखायी देता है। किन्तु कई स्थलों पर क्रमदीश्वर के अन्य लेखकों की सामग्री का भी उपयोग किया है। लास्सन ने क्रमदीश्वर के इस ग्रन्थ पर अच्छा प्रकाश डाला है। 'प्राकृत पाद' का सम्पूर्ण संस्करण राजेन्द्रलाल मित्रा ने प्रकाशित कराया था तथा 1889 में कलकत्ता से इसका एक नया संस्करण भी प्रकाशित हुआ था। 429.संबोधसप्ततिका इसके कर्ता सिरिवालकहा ने रचयिता रत्नशेखरसूरि (ईसवी सन् की 14 वीं शताब्दी) हैं। पूर्वाचार्यकृत निशीथचूर्णी आदि ग्रन्थों के आधार से उन्होंने इस ग्रन्थ की रचना की है। अमरकीर्तिसूरि की इस पर वृत्ति है। इस ग्रन्थ में समताभाव, सम्यक्त्व जीवदया, सुगुरु सामायिक साधु के गुण जिनागम का उत्कर्ष, संघ, पूजा, गच्छ, ग्यारह प्रतिमा आदि का प्रतिपादन है। समताभाव के सम्बन्ध में कहा है सेयंबरोयआसंबरोय,बुद्धोयअहव अन्नो वा। समभावभावियप्पा,लहेय मुक्खं न संदेहो॥ श्वेताम्बर हो या दिगम्बर, बौद्ध हो या कोई अन्य, जब तक आत्मा में समता भाव नहीं आता, मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। 430.साहित्यदर्पण ___ 14वीं शताब्दी में कविराज विश्वनाथ ने मम्मट के अलंकारशास्त्र के ग्रन्थ काव्यप्रकाश की आलोचना के रूप में साहित्यदर्पण की रचना की।साहित्यदर्पण में प्राकृत के 24 पद्य उद्धृत हैं, जिनमें से अधिकांश गाथासप्तशती के हैं तथा कुछ स्वरचित भी हैं। 431.सिद्धसेन और उनकी रचनाएँ ___ आचार्य सिद्धसेन के जीवन के सम्बन्ध में विशेष कुछ ज्ञात नहीं है, फिर भी, सामान्यतः यह स्वीकार कर लिया गया है कि जन्म से वे ब्राह्मण थे। वे संस्कृत, प्राकृत रत्नाकर 0 361
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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